जालंधर, 9 अप्रैल (SECULAR PUNJAB) केंद्र सरकार की संस्था नेशनल काउंसिल ऑफ एजुकेशनल रिसर्च एंड ट्रेनिंग (एन.सी.ई.आर.टी.) द्वारा स्कूली पाठ्यपुस्तकों में किए गए अवैध बदलावों की कड़ी आलोचना करते हुए महिला किसान यूनियन ने आरोप लगाया है कि सज्जे पखी संघ समर्थकों इशारे पर सही भारतीय इतिहास को तोड़ा-मरोड़ा जा रहा है जो संवैधानिक मानदंडों के खिलाफ है और एक विभाजनकारी और पक्षपातपूर्ण एजेंडे को उजागर करता है जिसे तुरंत वापस लेने और पाठ्यक्रम को संशोधित करने की आवश्यकता है।
महिला किसान यूनियन की अध्यक्ष बीबा राजविंदर कौर राजू ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान दोनों पर भारतीय इतिहास, राजनीति विज्ञान और नागरिक शास्त्र पर विकृत पाठ्य पुस्तकें प्रकाशित करने का आरोप लगाते हुए एक तीखा बयान जारी कर कहा है कि श्री आनंदपुर साहिब के मता 1973 के माध्यम से अलग देश की मांग कभी नहीं की गई जैसे के एनसीईआरटी की 12वीं क्लास पाठ्यपुस्तक में लिखा गया है जिससे सिख समुदाय की भावनाओं को बहुत ठेस पहुंची है।
केंद्र सरकार से पुरजोर अपील करते हुए किसान नेता ने मांग की कि इतिहास, राजनीति विज्ञान और नागरिक शास्त्र की बदली हुई स्कूली पाठ्यपुस्तकों को तुरंत वापस लिया जाए और पाठ्यक्रम की किताबों को सिखों और पंजाब के सही इतिहास को ध्यान में रखते हुए फिर से लिखा जाए ताकि स्कूली बच्चे प्रामाणिक भारतीय पढ़ सकें इतिहास और विशेष रूप से सिख राजनीति का ठीक से ज्ञान ले सकें क्योंकि मूल्यवान सिख इतिहास का एक विशिष्ट धर्म, एक विशिष्ट क़ौम और एक सुधारवादी आंदोलन के रूप में उचित स्थान है।
संघीय भारत में बहुपक्षीय और सामंजस्यपूर्ण केंद्र-राज्य संबंधों की स्थापना के लिए राष्ट्रव्यापी मांगों को सही ठहराते हुए, बीबा राजू ने कहा कि श्री आनंदपुर साहिब संकल्प को संसद द्वारा अनुमोदित राजीव-लोंगोवाल समझौते में वैध माना गया था और यह प्रस्ताव भी संदर्भित किया गया था और उस समय सरकारिया आयोग को सौंपा गया था जिसने इस प्रस्ताव के संदर्भ में संसद को अपनी सिफारिशें की थीं और इन्हें भारत सरकार ने स्वीकार कर लिया है। उन्होंने कहा कि भगवा दलों द्वारा जानबूझकर सिखों को अलगाववादी के रूप में चित्रित करना एक गहरी शरारत है जिसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
महिला किसान यूनियन ने भारतीय इतिहास को विकृत करने के लिए सरकार द्वारा चुने गए वांछित लेखकों की अक्षमता को जिम्मेदार ठहराया और कहा कि महान महाराजा रणजीत सिंह के साथ भी पाठ्यपुस्तकों में घोर अन्याय किया गया है।
उन्होंने इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर हमेशा की तरह राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग की षड़यंत्रपूर्ण चुप्पी की निंदा करते हुए इसे दक्षिणपंथियों का कठपुतली संगठन करार दिया और खेद जताया कि सिख युग के आदरणीय गुरु साहिबान, महाराजा रणजीत सिंह और बाबा बंदा सिंह बहादुर सहित विशेष रूप से स्वतंत्रता आंदोलन में सिखों की भूमिका व सिख राज्य और सिख युग को स्कूली पाठ्यक्रम में स्थान नहीं गया।
बीबा राजू ने पाठ्यक्रम में की गई इस शरारत को मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार द्वारा राष्ट्रीय एकता को कमजोर करने वाली एक और बड़ी भूल करार देते हुए किसान नेता ने सभी शिक्षाविदों और इतिहासकारों से एकाधिकार और सत्तावादी शासन के खिलाफ एकजुट होने का आह्वान किया ता कि दक्षिणपंथी समर्थकों को पाठ्यपुस्तकों को वापस लेने के लिए मजबूर किया जा सके और इन परिवर्तनों में संशोधन किया जा सके।
महिला किसान नेता ने पंजाब सरकार के साथ-साथ शिरोमणि कमेटी और चीफ खालसा दीवान से अपील की है कि वह एन.सी.ई.आर.टी. के नेतृत्व वाली ‘भगवाकृत पुस्तकों’ का उपयोग न करें बल्कि राज्य के सभी प्रकार के स्कूलों में बच्चों को पंजाब स्कूल शिक्षा बोर्ड की पाठ्यपुस्तकों ही पढ़ाएं।